Sunday 19 February 2017

हम पी भी गए ,छलका भी गए

                    जोर की  बारिश है।रविवार है ,एक  रेस्टोरेंट  में मैं हूँ मेरे साथ मेरा बॉस है  शहरी विकास मंत्रालय से आये फतवे पर तुरंत काम करना है इसलिए सन्डे को भी रगड़ मारी जा रही है खीज धीरे धीरे चूम कर जाती है लेकिन मुस्कुराना जरुरी है  चार लड़कियां बैठी हैं,मेरी सामने की टेबल पर। इनमे से एक का मेरी नजरो से सम्वाद कायम है 
    ये बात बॉस ने बखूबी भांप ली होगी । सो अब मुझे चार जोड़ी नजरो को सम्भालना है । तगड़े जुकाम के दरमियाँ हॉट कॉर्न एंड सॉर सूप पी रहा हूं। क्षण भर पहले मिली नजर अब परिचित होने पर है। मेरी ओर देख कर गर्दन घुमा कर अपनी सहेलियों में घुलने में नाकाम कोशिश।                                       अक्सर रेस्तरां का आकर्षण समझ से परे होता है , मानो  चाय की प्याली में आया सुगर क्यूब हो  जो चाय में थोड़ा घुल कर भी थोड़ा सा बचा रह जाये। और अंत में घुलने से इंकार कर दे । बार बार कपडे ठीक कर रही है ,कभी कालर तो कभी शर्ट के निचे के दोनों हिस्सों को मिला कर खीचना । इससे बटन्स के बीच की शाफगोई बासफाई सिल जाती है। असहजता हलके परिचय के बाद सहज ही होती है ,सो हो रही है।
          बिल ,बॉस पे करता है ,मैं अपने एक जोड़ी फ़ोन  दो जोड़ी डॉक्यूमेंट फोल्डर ,एक टेबलेट  समेटता हूं। नजर की अंतिम खुराक । नजरो से ही बाये होता है पलक कुछ सम्भालती है । एक पटाक्षेप ,और बाहर की हलकी बारिश धीरे धीरे कम होती हुई।   अन्दर जाने क्या बरस रहा है 

Sunday 4 October 2015

मेरा वाला मेरापन

अपने दिमाग में एक पंक्ति से लोगो को खड़ा कीजिये ,उनलोगों जिनको आप सूरमाओ का दर्जा देने की उदारता रखते हैं . अब इनकी जिंदगियां गौर से देखिये।  सबने घुटने टेके हुए हैं कहीं न कहीं।  उनकी सुरमा दिली बस अपने मंतव्यो तक सीमित है अपना जॉब अपना बिज़नस अपना इश्क अपनी ख्वाइश।  

थोडा जूम आउट कीजिये , "कलेक्टिव रेस्पोंसिबिल्टी" देखिये - अपना परिवार , अपना घर , अपनी कॉलोनी या बहुत जयादा तो अपने पडोसी और मोहल्ला।  
थोडा और ज़ूमआउट - अपना धर्म ,अपना कुनबा , अपना  मजहब। 

मैक्सिमम ज़ूम आउट - अपना देश। 

इससे ज्यादा ज़ूम आउट करने पे कोई भी उदहारण आपको निराश ही करेगा। 
यूरोप में रिफ्यूजी बेचारे पनाह लेने आने लगे तो तथा कथित मानवतावादी और कोस्मोपोलिटन्स की राष्ट्रीयता जाग गयी।  
अमीरी का चोला ओढ़े देश , खाद्य सुरक्षा और सुरक्षा का राग अलापने लगे। 

ज़ूम आउट बस देशभक्ति तक ही सीमित रहता है । 
देश भक्ति भी एक बेहतरीन अंध भक्ति है , देश कैसा भी हो दिल गुरेज नही करना चाहिए।   
तो सीरिया और लीबिया के लोग क्यों भाग रहे हैं वहां से ?- देखा सर इसमें भी अपना ही मंतव्य है , देशभक्ति भी तभी तक जब तक पिछला ज़ूम सुरक्षित रहे । 
पिछला ज़ूम मतलब वही परिवार बिजनेस इश्क मोहल्ला आदि 
सारा परिप्रेक्ष्य मैं, मेरा, मुझ पर आधारित 
भारत महान भी बोलते हैं तो "मेरा भारत महान " । अगर संयोग से मेरे  भारत की परिभासा आपके भारत से मैच नही की तो दो-दो भारत महान हो जायेंगे एक तेरा वाला और एक मेरा वाला फिर अगर कोई तीसरी पार्टी आ गयी तो वो अपनी परिभासा बताएगी। 
लेकिन मूल भावना वही है "मैक्सिमम ज़ूम इन पर बेस्ड "। 

सब निचोड़ यही है , मेरा और सिर्फ मेरा चलना चाहिए , आप मेरे वाले "मेरेपन " से विचलित हुए नही की अगले कलबुर्गी आप बन जायेंगे और शायद तब आपके लिए कोई उदय प्रकाश साहित्य अकादमी पुरस्कार छोड़ने की हिम्मत छोडिये, गुजारिश भी न कर सके।  

अपेक्षाकृत विकसित वेस्टर्न उत्तर प्रदेश  में आता है दादरी ,  - "मेरेपन" के वहशीपन ने ऐसा लपेटा सबको कि किसी दुसरे का "मेरापन" पसंद नही आया और उसको बेदर्दी से मौत के घाट उतार  दिया 

जब तलक मुर्दा तैरती लाशो ने  भूमध्य सागर से लगी यूरोपी सीमओं   पर दस्तक नही दी , यूरोपी "मेरेपन" में दरार नही आई। 

हम कौन से माहौल में सांस ले रहे हैं? , इसमें सडांध है कडवे मेरेपन की 
और परिवार ,मोहल्ला, धर्म, मजहब ,देश ये सब उस "मेरेपन" की बड़ी बड़ी होर्डिंग हैं जिनके कोने में "सौंजन्य से" लिख कर किसी सेना , वाहिनी , क्लब , राजनीतिक शख्स या किसी रुद्राक्षी बाबा का नामकरण रहता है।  

कोई विकल्प सूझे तो मुझे भी इत्तला करना 

Saturday 27 June 2015

आकाश जो गूंगा है

 फिल्म "सहर " में बोली गयी -


इस काली ठंडी आग को वापस कर रहा हूँ मैं….. 
और इसीके साथ लौटा रहा हूँ, ये सफेद मिट्टी,
ये गतिहीन पानी , ये बहरी हवा और ये अथाह आकाश, जो गूंगा है…..| 
यूँ तो मैं जानता हूँ ईश्वर, की तुम जानते थे की एक दिन
मैं ये सब कुछ इसी तरह तुम्हें वापस कर दूँगा |........


Saturday 16 May 2015

मैं पाठक को ऊल जुलूल बकवास का वचन देता हूँ


लिखना क्या है , दर्ज करते जाना है गुजरते पल को , एक सांकेतिक घोषणा है जो घटित हो रही है हर एक पल में ,जिसको लिबास की कमी मिली तो कभी उर्दू पहनती है कभी हिंदी। ये असमंजस का बुखार है , क्षणिक अवसादो का खुमार है जो समय दर समय रेंगता सा चढ़ता है और बेचैन कर देता है जब तक झटक के उतार ना दिया जाये। इसे सृजन नही कहा जायेगा  ये विघटन का परिकल्पित स्वरुप है जो अवसादी ह्रदय से बहार निकला है । ये तो बाद में सृजन कहलाता है । कविता नज्म शेर लेख गद्य पद्य नवजात के जैसे होते हैं , कोई इनका सृजन जान बूझ कर नही करता बस बन जाते हैं  , बच्चे हैं हो जाते हैं कोई सोच कर नही करता , लेख हैं लिख जाते हैं कोई सोच कर नही लिखता , कम से कम मैं तो नही सोचता
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रुको यार ठहरो , जरा दुर्दशा देख लेने दो, जरा यकीन तो आये के ये मेरा दिल कमबख्त है जो कटे हुए अंग के जैसे नेप्त्थ्य में तड़प रहा है । ये सांप इस गली में आ कैसे गया? जब से आया है और अंतिम खबर लिखे जाने तक लोगो की तीखी नजर का शिकार है सब उसपर केरोसिने डाल कर मार देना चाहते हैं। 
रुको यार देखने दो । असल में   यार हम बड़े खुराफाती खिलाडी किस्म की प्रजाति रहे हैं शुरू से । जिन जिन बातो से मेरा वास्तव में कोई वास्ता नही होना चाहिये था उन सब बातो से मेरा वास्ता रहा है 
बड़े बड़े दांव पेंचो में इतना माहिर रहा हूँ की खुद का डूबना भी बस एक तमाशा लग रहा है 
                                    
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समय के रहगुजर इतनी आसान हो जाती है जब आप प्यार में होते हैं , मानो शुरू करते ही सब कुछ इतना तेज़ हुआ के आप को मंजिल मिल गयी । हिज्र की राह पदयात्री की होती है , कार से नही तय की जाती , अकेले चलना होता है । इसका चालक खुद इसका सवार होता है । कमसिन हमसफ़र की पसीजती गर्दन पर रखे संयमी  हाथ एक दिन कंटीले बबूल की फुनगी पर खोयी हुई पतंग के जैसे लटके मिलते हैं 

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आदमी है क्या बे , दो नैन ,दो हाथ पैर, किडनी दिल और धड़कन। दिन भर अथाह अपने जैसो के बीच घूमता है फिर अपने वाले की तलाश में दर बदर तन्हाई का तमगा लगाये फिरता हैं

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Thursday 14 May 2015

कुरेदते हो जो अब राख , जुस्तजू क्या है ?

फिर से वही मुसीबत , ना सुकून को परिभासा मिल रही है ना सहूलियत को आयाम
साल के कुछेक दिन ऐसे ही होते हैं । बेमानी ही होगी अगर इनको असल जिन्दगी में ढूडने बैठेंगे
अजीब दिन होते हैं ऐसे ,जब एक मुश्त मष्तिष्क का एक एक कोना सिर्फ एक ही जगह टिक कर पूरा दृश्य खंगाल ले , आवारा घूमने का दिल करे , किसी पार्क के बहार बनी सीढियों पर बैठ के आती जाती गाडियों के फ़्लैश लैंप की रौशनी का कोलिसन होते देखे
ऐसी चम्पी कराने का मन करे जिसमे सर की एक एक कोशिका  तेज़ आंधी में खुलती-बंद होती किताब के जैसे उद्दंडता करे , या फिर तेज़ हवा में उड़ते कागज के जैसे ऊपर जा के नृत्य करता हुआ निचे गिरे
कभी बारिश में रूह तक भीगा दी जाये ,भीगे कपड़ो में ही  पकोड़े खाने के लिए मन बेचैन हो उठे

आज भी दिन अजीब है कुछ । वजहे अलग हैं , उपरोक्त से परे  , कुछ रोज के लिए डेल्ही आया हूँ उसके बारे में ख़याल आना लाजमी  हैं। बिना वजह ख्याल में आना बस उसी की आदत रही है । उसकी आवाज में खुदाई टपकती थी , मैं उसको अक्सर दिमाग में द्रश्यित कर लेता था बात करते वक़्त
आज फिर ख्याल में आ गयी , क्या कर रही होगी अभी , मेट्रो में होगी या कोई सड़क क्रॉस कर रही होगी , बैग ले कर किसी फाइल को हाथ में सम्भाल रही होगी या फिर हाथ से आधी स्क्रीन ढक कर मोबाइल पे टाइम देख रही होगी , पेशानी पे बल पड़ रहे होंगे क्या?


शायद रोड की दूसरी पट्टी पे खड़े व्यक्ति को देख कर अचानक सोचा होगा - "कहीं "मैं " तो नही हूँ?"
जरा से भी समान दिखने वाले व्यक्तित्व में मुझसे समानताये ढूंढ ली होंगी , "जरा सी हाईट और होती तो एक दम वही है , नही नही ये तो वही है ,बदल गया होगा कुछ , ये वही है " उचक के बुलाने से पहले ही भ्रम में दरारे आ गयी होंगी , यथार्थ ने भ्रम की दरारों से सेंध मारकर संपूर्ण मंतव्य को आडम्बर घोषित कर दिया होगा

कुछ रिश्ते उलझाव के साथ आते हैं मुद्दत तक पता नही चलता के करे क्या उस रिश्ते का , कुछ सम्भावनाये न दिखना ही अवस्यम्भावी हो जाता हैं ..

एक ही शहर में हूँ अभी , मैं हौज खास वो करोल बाग  , मैं अपने रोजगारी फसाद में उल्झा  ,शब्दों में रिश्तो की सलवटे तलाश रहा हूँ वो शायद कुछ और कर रही हो

बहुत ठण्ड है आज , कोहरा भी जम के बरस रहा है , कार के शीशो पर तगड़ी ओस फैली है जैसे सदियों से खड़ी हों। कारो के भीतर लेकिन ठण्ड नही होगी, अगर कुछ देर बैठा जाये तो ,

एकदम यही हाल रिश्तो का है ,तमाम ओस जमा है ,सर्द हो चुके हैं अवशेस तक । पर  गर्माहट है , बस कुछ देर बैठने की देर है

(जनवरी की सत्रहंवी तारीख २०१५ )

Tuesday 5 May 2015

रात तीन बजे की आहट

पलायनवादी , नहीं नही , हो भी सकते हैं, लेकिन फिर भी कुछ चीजे ज्ञात होने पर भी भूलने की कोशिश की जाती है  मुझे ज्ञात है के जेहन और पलक के बीच कोई कतरा है जो आँखों से निकलना चाहता हैं लेकिन मुझे भूलने में सुकून लग रहा है कई बार मित्रो के साथ पार्टी मना चुके हैं पिछले कुछ हफ्तों में भूलने की कोशिश जाया नही जाती। पिछले बुरे पल कोई तो एमिनो एसिड या एंजाइम  निष्कासित करते हैं , पूरे जेहन में जलन होती है उनको सोच कर 

अलार्म लगाया था पानी भरने कोकोई कोई रात ऐसी होती है के पूरी बीत जाती है सोते हुए फिर भी  लगता है मानो मस्तिष्क जाग रहा था उसे एक एक करवट याद है कब कब ली गयी और हम बस आँखे मूंदे फैले रहे , शायद इंतज़ार और डिमांड दोनों करते रहे के अब नींद आएगी 
            जब अँधेरा हो तो और जादा अँधेरा रहता है  गोया कोई कमरे में लाईट जला दे तो पलक के पीछे तक का समां रोशन हो जाता है आँखे जोर से बंद करनी पड़ती हैं और  दिमाग पर अतिरिक्त जोर पड़ता है । खैर अलार्म से आठ मिनट पहले ही नींद खुल गयी है ,पूरा चादर पसीने से गीला है और सिमट के पीठ के नीचे आ चुका है । गंधार कला में बनी कोई नर्तकी जैसा लुक दे रहा है  तीव्रता से उठा आँखे मलते हुए , किचेन में गया नल खोला , पानी का निशान नही ,हाँ आवाज है । आहट है आने की 
             आधी रात से तीन घंटा बाद के सन्नाटे में नल की तीव्र ध्वनि एकदम समन्दर के लहरों में फसी हवा की तड़प जैसी  है बड़ा मधुर है ,मानो कोई सूर्य को अर्घ्य दे रहा है। दुर्लभ है , आहट दुर्लभ है , आसानी से नही मिला करती ये । हमको वो चीज शर्तिया कभी नही मिलती जिसकी जरूरत है । यहीं से रोस उपजता है । हमारी तार्किकता को औंधे मुंह दबा दिया जाता है और तब तक नही छोड़ा जाता जब तक हाथ पाव शिथिल ना पड जायें 

 मैं आहट के सहारे वैसे ही प्रतीक्षित हूँ जैसे विदर्भ का कोई किसान सोचता है के पानी आएगा तो सारे दुःख चले जायेंगे 
सिर्फ हम ही प्यासे नही हैं बगल के रूम के दरवाजे पे आहट मिली , लड़की निकली( बाल्टी ले कर के उनींदी सी  ,बाल बिखरे , अँधेरे में देखता तो सहम जरुर जाता , उजाले में मासूम लग रही है  ) और बाथरूम में चली गयी

आया, आया पानी आया और आते ही तीन फ्लोर्स में बंट गया ,धीरे धीरे तीनो को ही कतरा कतरा जलास्वादन हो रहा है 
मैं  गिरती बूंदे देख रहा हूँ , कुछ बूंदे टपक के मेरे पे ना गिर रही होती , तो सो गया होता खड़े खड़े ही वो लड़की व्योम की तरफ खुलने वाली सीढियों पे बैठी है , सोने की कोशिश में इंतज़ार कर रही है पानी भर जाने का दूर कोई ट्रक की आवाज आ रही है मानो गीले कीचड से निकलने की कोशिश कर रहा हो 

आखिरकार जैसे तैसे बूँद बूँद का बनाया समन्दर मेरी बाल्टी में समां गया  बाल्कनी से झाकने का मन किया, सो उधर रुख किया   बड़ी ताज़ी हवा थी , नीचे अँधेरे  छज्जे पे कुछ कबूतर थे , मैं निस्तब्ध एकदम खामोश देखा किया एक जोड़ा बिजली की तार पे बैठा है  एक दुसरे को देखते हुए मानो कह रहा हो क्यू खामोश और मायूस हो , सिर्फ हम पक्षी ही नहीं, परमपिता परमात्मा की सबसे हुनरमंद संतान भी सुखी नही है , उनमे भी ज्यादातर हैं जिनको मुसीबते हैं उनमे भी कुछ के दिमाग जागते रहते हैं कुछ की आँखे 

कबूतरी पंख फैला देती हैं ,मानो झिड़क दिया हो उसको की इंसानों के बाते मत करो 


दुनिया भर के सकारात्मक पक्ष जोड़ डाले सिर्फ जीने को प्राथमिक बनाने के लिए , कोई सार्थक जवाब नही मिला , कोई विकल्प नही सूझा तो जीते रहना सबसे आसान लगा

Friday 10 April 2015

हमको वो बात वैसे याद तो अब क्या है लेकिन -


ठीक है ठीक है ,महीनो होने आये थे बातो में वो सुकून बाकी नही रही थी ,ठीक है कोई बात नहीं ।  सिर्फ वो ही थोड़े ही जिम्मेदार थी , आपने भी तो अपने हुनर को तराशने के लिए अपनी संपूर्ण शक्ति किसी करियर रुपी कुए में दे मारी थी , उसने भी दे मारी 


तो क्या हुआ जो आठ महीने पहले तक आपने रिश्ते की  रस्सी बिना गिरह के सम्भाल के रखी थी आज उसमे जो तनाव आया वो काफी था उसे तोड़ने के लिए सो टूट गया

 इस दौरान  महीने गुज़र चुके, कई मौसम गुज़र गए दुनिया फिर से मंदी की कगार पे है इस बीच जाने कितनी रूहे भटक गयी कितनी लडकियां  निर्भया हो गयी कितनो को ग़ुरबत ने अपना शिकार बना लिया और आप प्यार का रोना रो रहे हैं ? लानत है आप पर 


मुझे नहीं पता था उस रात मैंने किस मनः स्थिति में ईमेल खोल दी और मुझे बातो में लरज हीनता और कुर्बतो की ग़ुरबत का एक नया ही कारन देखने मिला तुमने तो बताना भी जरुरी नही समझा के तुम जड़ पर अटैक कर रहे हो , तुम समूल नष्ट करने वाले हो जबकि ये ही करार तो हम सालो से निभाते आ रहे थे बता देते तो सुकून से रिजर्वेशन करा के रिश्ते की मय्यत निकालने आते , टिक के रहना पसंद किसको है 
लेकिन बात यहाँ पसंद ना पसंद की नही थी हमने तो इसको मुसलसल सिर्फ इसलिए जारी रखा क्युकी हम दोनों को ही   इसमें म्यूच्यूअल बेहतरी थी 

कभी हमको यकीं था  गुमान था , दुनिया हमारी जो मुखालिफ हो तो हो जाये मगर तुम मेहरबान हो 
हमको वो बात वैसे याद तो अब क्या है लेकिन  हाँ उसे यक्सर भुलाने में अभी कुछ दिन लगेंगे 

बदलाव म्यूच्यूअल मस्ती में चाहिए होता है उस केस में बंदा हुनर नही तराश पाता 

ठीक है , कोई बूँद नही चाहती की वो जिस पत्ते पर टिकी है उससे अलग हो लेकिन जब महीने गुजर जाये बिना हलचल के फिर भी आप उसी स्थान विशेस पर अपने प्यार की कब्र खुदवाना चाहे तो आपसे बड़ा लुल्ल कोई नही  सब बदलना चाहते हैं तो हम ही क्यू ठहरे रहना चाहते थे हमको नही पता। जिसे चूमा है अगर उसकी भी यही रजा है के जल्दी से निचे फिसल कर अंजाम तक पंहुचा जाये 

तुम किसी को भी देख लो सब प्रयोगार्थ उपलब्ध हैं ,कोई भी हो मैं ,तुम, कोई और या कोई और । जो जितना सुन्दर उसकी प्रयोग धर्मिता उतनी अधिक , जो कम सुन्दर उसकी  प्रयोग सार्थकता उतनी ही कम। अपनी ही बात कर लो , ईमानदारी से बोलो तो सुबह से ना जाने कितनी बार कहा कहा इस्तेमाल हो चुके होंगे 

कोई किसी के लिए हमेसा के लिए नहीं है , पल विशेष में कौन कब कैसे टूट जायेगा कोई आईडिया नही 
कब आपकी प्रयोग धर्मिता नैराश्य में बदल जाय किसी को नही पता 
उत्प्रेरक की भांति काम लिए जाते हैं -
मैंने लिए तुमने लिए किसी और ने लिए हम दोनों ने किसी और से लिए 

मेरे पास आज भी तुम्हारी आवाजो के कतरे पड़े हैं ,सकेर कर रखे थे एक जगह लेकिन इतनी जल्दी उनको खोलने पड़ेगा ये नही पता था सूचना प्रोद्योगिकी से लैस इस रिश्ते में नेटवर्क की वो कमी पेश की है तुमने की तुम्हारी एक जरा सी भी जिन्दा खबर नही है मुझे ,और तुम्हे मेरी 

कुछ अंतिम प्रयास जो मेरी तरफ से किये गए वो असफल इसलिए हुए क्युकी आज भी मेरा मकसद बेहतरी का था मस्ती का नही।तुम्हारी हुनर-तराश कोशिशो को कोई बट्टा ना लगे इसलिए मैंने कोई कदम नही उठाया , उठाऊंगा भी नहीं क्युकी मेरे पास बहुत कुछ ऐसा है करने को जो बाद में मुझे वैसे नैराश्य में कम से कम नही भेजेगा जैसा तुमने उस खिली धुप के नीचे  बंद कमरे में मुझे दिया था रही सही कसर मेरी खुद्दारी और तुम्हारे अहम् ने पूरी कर दी 

एक तरह से सही भी हुआ , कम से कम मैं खुद एक रिश्ते को तोड़ने के पाप से बच गया वरना कल को मेरे फेमिनिस्म को झटका लगता जब हम  अपनी औकात दिखाते जैसे तुमने दिखा दी हालाँकि हमारे लिए वो स्वाभाविक ना होता तुम्हारे तो स्वभाव में ही है शायद 

अभी कोई गम नही है , सुकून है तुम भी खुश हो अपन भी एकदम मस्त 









Friday 12 December 2014

एकमुश्त इश्क की आखिरी किश्त

15 NOVEMBER  2014 



कृपया ध्यान दीजिये गाड़ी नंबर एक दो आठ शून्य तीन पुरी से आने वाली मुग़ल सराये इलाहाबाद के रास्ते नयी दिल्ली जाने वाली पुरषोत्तम एक्सप्रेस प्लेटफार्म नंबर छह पर खड़ी है 
अभी अभी इलाहबाद से लौटा हूँ , रात के ११ बजे तक घर पर आने की ख्वाहिश को धता बताते हुए भारतीय रेल  ने एक बार फिर बताया के वो बदली नहीं हैफिलहाल एक बज रहे हैं  और नींद कहीं किराये पे गयी है चेहरे की मुर्दानी अवस्था में बस दो आँखे ही हैं जो जीवित दिख रही हैं. रेलवे स्टेशन पर कोई नूर भी नही दिखा जो चेहरे पे शराफअत  और रहिसियत का झूठा मुलम्मा चढाते 

ऐसे केस में बस लिखने का ही मन होता है सो करने बैठ गए जूस निकलने वाली मशीन और हम सबकी जिन्दगी में एक बड़ी सटीक सिमिलरिटी है - दोनों रस भरे आदमी का कचूमर निकल देती हैं अभी जिन्दगी का चौथाई हिस्सा भी पूरा नही हुआ है शायद लेकिन उसके खिलाफ  नफरते  एक अच्छा खासा कोना बना चुकी हैं दिल में

इलाहबाद में ही था मैं जब फ़ोन आया था . बड़ी ख्वाहिश से किसी ने बताया था के वो लौट के आया है शायद उसकी ख्वाइश रही होगी के कोई इंतज़ार में होगा तो लौट आने की खबर देने में विलन के मारे जाने जैसा सुख मिलेगा. 

लेकिन कौन कमबख्त इंतज़ार कर रहा था, कोई भी तो नहीं , बनिस्बत उसके जाने के बाद मेरा कोई काम  न तो रुका और न ही आने के बाद बन् ने वाला है, सब तो खुदाया वैसा ही चलेगा 
न जाने क्या सोच के किसी ने लौटने की खबर दी है 

कुछ काम जिन्दगी में उत्तर प्रदेश बोर्ड की माध्यमिक परीक्षा में बेहतरीन अंक लाने की भांति चमकीले होते हैं लेकिन खोखले भी ., देखने में हसीन लेकिन जिदंगी के किसी भी  अगले कदम में मदद न करने वाले काम 

कुछ दिन पहले एक महाशय अपने सुपुत्र को मुझसे मिलवाने लाये थे ,
"उनको पता था की मैं अभी बेरोजगार हूँ , शायद मुझे उदाहरनार्थ पेश करना चाहते थे अपने सुपुत्र को , की देख ले भाई १२वी के मार्क्स किसी काम नहीं आते , "
  93.5 प्रतिशत है यु पी बोर्ड की १२ वी में भाई!
उसकी शक्ल देख के नही लग रहा था की उसके इतने मार्क्स आ सकते हैं , तथापि मैंने यु पी बोर्ड की सिक्षा प्रणाली का ख्याल कर के खुद पे कण्ट्रोल किया

टी वी पे खबरे छौंका मर रही थी  डीयु में एडमिशन में लगने वाले है हाई मेरिट वालो का ताँता" , इस के ९८ % , उसके ९६% , उसके सामने तो उसकी शक्ल यु पि बोर्ड की सिक्षा प्रणाली के समान ही बनती जा रही थी
मानो पहली बार बेचारे ने फ्रीजर से बर्फ निकलने की कोशिश की हो और आइस  ट्रे ही  ना निकल रही हो

अब चूंकि हमारे आस पास का समाज किसी के बुलाने पर मिलने जाने की वकालत करता है तो मैं  भी लौटने वाले से मिल ही लूँगा . बेहतरीन न सही बेहतर तो रहेगा 
किसी से कहा तक चुप रहोगे आप , नहीं रह सकते ,जबकि आप भी जानते हो की आपका दिल नारियल जैसा है
कोई फ़ना होने तक का जज्बा दिखा जाये तो भी आपके मुंह से इनकार ही निकले तो मुसीबत आपके मुंह की है ,सामने वाले की ख्वाहिश की नहीं

मिल के सब कुछ समझाना ही तो हैं , इश्क की आखिरी किश्त समझ कर अदा कर देंगे चमकीले  कामो की चमक कितनी फीकी थी यही तो बताना है और अगर कुछ चमक थी भी तो वो समय ने रगड़ के  मनहूस कर दी है। रही सही कसर बदली हुई प्राथमिकताओ ने  पूरी कर दी

मुझमें अब भी थोडा सा पहले जैसा मैं बचा हूं .... जब भी आइना देखता हूं , ये एहसास होता है

जिन्दगी सिर्फ दो लोग के साथ मिलने रहने खाने का नाम नहीं है , न तो कोई सिमरन बन पायेगा न राज क्युकी जिन्दगी नामक  अमरीश पूरी DDLJ  के अमरीश पूरी से कही जादा बडा विलन है जिसके डायलोग आठो पहर आपको सोला दुनी आठ और बारा चोको साठ सिखाते रहेंगे और आप हामी भरते रहेंगे भले ही आपका आयतन उतना वॉल्यूम लेने का हो या न हो जिन्दगी अपने आप को उड़ेलती रहेगी गरम मोम की भांति 

अब जा के जिन्दा आँखों का नींद से करार हुआ है 

बकने में अलग मजा है  बकते रहिये
फिलहाल ये सुनिए -





15 NOVEMBER  2014 
(स्याह रात ! चीनी मिटटी के बड़े कप की चाए के साथ )




धरम




Monday 2 June 2014

वो दरख़्त ही ना रहे तो क्या चाँद उगेगा

भयंकर ऊब देखी है कभी , जब अंग प्रत्यंग किसी भी मुद्रा पोजीशन में  असहज ही  महसूस करते हैं , अभी तो कुछ देर पहले कुर्सी पे बैठा था अब फिर से तीव्र मंशा जाग उठी है की उसी पे बैठो मानो ख़ाक कर देनी वाली धुप में पतंग उड़ाने की आज्ञा ना मिली हो जबकि आपसे आठ नौ फीट की ऊंचाई पे पेंच पे पेंच लड़ रहे हो.
तसल्ली को परिभासा नही मिल रही है ऐसी असहजता क्यू है , करने को बहुत कुछ है पर हो क्यू नही रहा , सब की सब तारतम्यता मानो  ऊँगली में अंगूठी के जैसे फस के रह गयी हो

क्या मुझे धार्मिकता का बेडौल स्वरुप अपना लेना चाहिए , क्या तिलक चन्दन वालो को बिना बात असहजता नही होती ..
कहीं ये सर दर्द तो नही है , दांत दर्द तो बिलकुल भी नहीं है
क्या रोज सुबह पार्क में टहलने वालो को ऐसा होता होगा

फफक कर बिना आवाज रो लेने से भी क्या कोई बतायेगा की ये क्यू है
इतनी कुव्वत नही है की समझ सकू हर चीज को , हाँ वाकई नहीं है ,

माँ से लिपट कर सोना याद है ऐसे में , दुःख और गलतियाँ छुपाते उसी से थे लेकिन एक साहस उसी से लिपटने में मिलता था , दर्द खीचना मानो  आदत है उसकी ,जन्म से ले के अब तक हर एक दर्द का कतरा कतरा जिसको अपनी गलतियों से हम सीचते आ रहे है, वो खीचती आ रही है , लत है उसकी ,

मेरी ख्वाहिश है के मैं  फिर से फ़रिश्ता हो जाऊ 
माँ से इस तरह लिपट जाऊ के बच्चा हो जाऊ 


वो शहर फ़कीर की मुट्ठी जैसा था , जब खोलता था दुआए निकलती थी

वो शख्स जो दिन भर की थकन के सहारे मुस्कुरा कर के जिन्दगी भर बताता रहा के वो प्यार करता है , जिन्दगी लगा दी चंद  जिन्दगिया बनाने मे उसने , आज भी वो अपनी हस्ताक्षर के जैसा ही है , बदला नही है जरा सा भी ,बस शांत रहता है ,


ये गजब ही खुदाई है , दरख्तों को छोड़ते वक़्त कोई नही सोचता पत्तो की सर सर और खर खर हमेशा सतह  पर साथ चलेगी लेकिन चलती है

जिनको उगते चाँद की लोकेशन किसी दरख़्त के सहारे पता चली हो वो दरख़्त ही ना रहे तो क्या चाँद उगेगा ?


बस यही सब असहज करते है , घर और शहर छोड़ना आसान है , छोड़ कर रहना बहुत मुश्किल

ये सब इतनी शर्ते क्यू लगा दी आजाद ,चीटी मार ,कुल्फी छाप शख्स पे के बेचारा बिना सल्तनत ताउम्र के लिए  गुलाम हो गया 

13 november 2012                                                                                                              OM MISHRA
(स्याह रात )                                                                                                                      ( NEW DELHI)


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Sunday 13 April 2014

परिभासा ही बदल दी

भैया एक सांसद चुनो , सरकार नहीं , सरकार चुनना या बनाना उन 545 लोग का काम है जिनको आप चुन के भेजेंगे ...ये उनकी जिम्मेदारी है की वो एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर सहमत हो और सरकार बनाये ... अमरीका में भी अर्थव्यवस्था तब चरमरायी थी जब वहां स्थायी और स्टेबल सर्कार थी ......स्टेबल सरकार चुनने के चक्कर में सांसद चुनना भूल जाओगे क्या ....कैंडिडेट देखो ,पार्टी नहीं ..वोट देने की सोचो.......लोरेअल पेरिस का शैम्पू नही है सर्कार बनाना जो आपने ब्रांड देखा और फेक दिया अपना वोट .... कोई समझ न आये तो नोटा का प्रयोग करो ...स्टेबल सरकार की ठेकेदारी संविधान ने किसी भी नागरिक को नही दी है , ये सब "सहूलियत की राजीनति के चोचले जो भी चाहे सोच ले" की नीति का परिणाम है जो आपको अपना अभीस्ट कर्तव्य स्थायी सर्कार चुनना समझ आता है न की एक उम्दा सांसद चुनना .....संविधान में बस अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार दिया गया है .....पूर्वजो को ज्ञान होता की संविधान और राजनीती के दुर्गति के ऐसे स्वरुप इतनी जल्दी देखने को मिल जायेंगे तो वो प्रस्तावना में ही लिख देते की भैया 18 से ऊपर वालो को सांसद चुनना है सरकार नहीं ............. आमिर खान भी गलत बोलते हैं -"देश का सबसे बड़ा लोकतंत्र चुनावों में अपनी सरकार चुनेगा "... एक बात वो सही भी बोलते हैं - अच्छा चुनो सच्चा चुनो ... अगर सर्कार चुननी होती तो वो बोलते "अच्छी चुनो सच्ची चुनो "...... बाकी चवन्नी भर ज्ञान तो सबके पास है उसका प्रयोग करो

Thursday 13 March 2014

बड़े तपाक से लिखते हैं ....


कभी मैंने तुम्हारे  अक्स तक से अंदाज़ा लगाया था.  वजूद फूंक दो तो तुम्हारे नक्श में  जज्ब होना क्या मुनासिब भी ना होगा, एक अरसा हो चला प्यार और इश्क बुत वफ़ा जफा से मेरी तर्ज़ इ गुफ्तार अलग हो चली हैं ....इन सबसे बस मुंह का जयका ही ख़राब होता है , गोया इन सबको छोड़ किसी और विषय को उठा के लिखने पर वैसा ही  मजा आता हैं जैसे गर्म पानी की बोतले पेट पर लुढकाने पे ...


गालिबन ये सुनिये गजल जीत सिंह को 
"खुमार ऐ गम है  महकती हवा में जीते हैं "

Tuesday 9 July 2013

अबरू कि कटारी को दो आब और जियादा


 परमानन्द कि परिभाषा बड़ी विचित्र गढ़ी गयी है 
वो बोले के उस एक ईस्वर में सैट चिट् आनंद है , वही एक परमानंद है , मैं माफ़ी चाहूँगा ऐ खुदा , मुझे तो ऐसे ही आनंद मिल जाता है - फिर चाहे वो सुबह के अखबार कि आवाज से मिले, या किसी हुस्नियत कि अमीर के सहारे आँखे सेकने से , या फिर "सुन के रहत कि आवाजे यूँ लगे कहीं सहनाई बजे जैसा कुछ सुन कर के "

एक सुबह छत पे सोते हुए  आप उल जुलूल आवाजे सुन के कान पे चादर रखते हैं .....उस तीव्र स्वर  वाले काग को बोलते भी हैं कि सो लेने दे भाई रात में देर में सोया था लेकिन उस कमबख्त काग को भाई चारे का तनिक ख्याल नही है ...अपने इलाके कि कुछ मक्खिय भी ला के आप के सफ़ेद ठन्डे चादर पे बिठा दी आ के...........चमकती सफेदी के साथ शनि देव के पिता श्री पूरब से झाँकने कि कोशिश में आपके बगल वाली रेलिंग से टकराते हुए तिरछी निगाह से परेशां करने कि तयारी में हैं , पीछे के मकान से किसी बच्चे कि इंग्लिश में कुछ रटने कि आवाजे आ रही हैं .सामने वाले मैदान में कुछ झाड़ू जैसी लगायी जा रही है 
हट करने कि आवाज से इतना पक्का हो गया है कि किसी कि स्वचालित गाय या भैंस स्वयामानुसार नही चल रही है ...बगल में राखी पानी कि टंकी में पानी भरने कि आवाज साथ में जुगलबंदी में है ..बगल में या कहीं दूर किसी को पूर्ण परमानंद कि खोज है , बजाये चला जा रहा है "भोले को नहला दे मेरे शंकर को नहला दे "
लेकिन अपना भी पुराना रिश्ता है इस सबसे , बेशर्मी से थोड़ी सी नाक खोल कर सोने कि कोशिश में कई बार घंटो कामयाब हुआ हूँ , ...............
अबरू कि कटारी को दोआब और जियादा 

लेकिन मजे कि बात देखो आज इस सब को याद (पंखे कि साये साये ने हालाँकि झींगुर कि झाए झाए दबा दी है )कर के भी वही परमानन्द प्राप्त  हो रहा है जो उस दिन से ले कर आज तक शायद भोले को नहलाने से प्राप्त होता ....
भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)

बहुत काली सिल जरा-से लाल केशर से
कि धुल गयी हो

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
        मल दी हो किसी ने

नील जल में या किसी की
        गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो ।

और...
        जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।       (शमशेर बहादुर कृत )


चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद भी आनंद कि खोज अगली योनी में ढूँढना बदतर नही बदतरीन है ,

समझ आ जाता है कभी कभी कि क्या मजाक होता है खुद से ही ,
सरसराती हुई ट्रेन आपके विपरीत दिशा में गुजरती है आपके बगल में , कार कि गति 40 के पास हो और बगल से लग भग छूता हुआट्रक निकलता है , पता है क्यों , क्युकी आप आनंद ढूँढ रहे थे , चलती ट्रेन में , वरना ४० कि स्पीड वाला ट्रक कभी कार को छूता हुआ न जाता
जब आप पसंदीदा गजल के पसंदीदा अंतरे को सुनने ही वाले हो और ट्रक ने होर्न बजा दिया हो
सामने खड़े दो स्कूली बचे आपके डरी हुई रूह को देख हसे हो
रिक्शा वाले पे गुस्सा निकला हो और गाड़ी का सीसा खोले हुए ऐ सी चलाया हो ,





Sunday 9 June 2013

बदकिस्मती जब किस्तों में आती है .....

शेर कहना आज कल , आप यूँ समझिये की बस ग़ालिब मोमिन फैज़ , फिराक , साहिर , बदायुनी , गुलजार , इनको चैलेंज करना होगा ....आइडियल गैस के फार्मूला के जैसे नही हैं इनके शेर की  एक्सिस्ट ही ना करे , ये आइडियल पे खरे उतरते हैं , बाकि जो लिखते है वो एब्नार्मल .....................

कोई पैमाना बनाया जाता गर मौसम की एन्ट्रापी मापने का , तो आज मैक्सिमम डेविएशन दिखाता नार्मल सिचुएशन से
........
चार बजे कालेज जाना है , हाँ शाम के चार बजे , इग्नू सेंटर चार बजे ही खुलता है ,
धुप जबरदस्त है , पेडो की पत्तियां बेचारी दीवाली के फूटे हुए अनार की भांति झुलसी दिख रही हैं ...जबरदस्ती जमीन अपनी एपिडर्मिस को उड़ा कर के घरो में घुसा रही है , हवा उस के साथ वफ़ा कर रही है ,क्या जुगल बंदी के साथ काम कर रही है , एक बार फिर मैं बोलूँगा के मौसम बता रहा है की हाँ वो है
कमरे से बार निकलते ही ऐसा दृश्य देख के मेरे मन में वैसा ही रोस हुआ है जैसा पेट्रोल के दाम अचानक बढ़ने से , मकान मालिक के टाइम से पहले किराया मांगने से ,या किसी तथाकथित ब्राह्मण को स्वयं के मांसाहारी बताने से उसके मन में उद्वेलित होता है ...

                      लेकिन जब तक खुद को धुप की भाव भंगिमा और लू की वफाई से बचाने के लिए फिदआयनी चोला ईजाद किया , तब तक अमरीश पूरी टाइप कुछ तीन ओर से आये बादलो ने मनो  धुप और हवा की रास लीला में विघ्न डालने की ठान ली है
अपनी दुपहिया बहार निकलने में वैसा ही सुकून मिल रहा है , जैसा शेरपा तेंन्जिंग को एवेरेस्ट पे चढ़ने में मिला होगा ,

            बगल की चाय की दुकान में मुकेश का गाना बज रहा है , कोई सुन नही रहा है शायद , बस बजे जा रहा है सब मौसम की बात कर रहे हैं , मेरा विस्वास था की बारिश मेरे कालेज पहुचने से पहले नही होगी .......
आसमान का बस अब एक टुकड़ा ही दिख रहा है चारो और बदलो से घिरा हुआ , पत्तियों में जूनून आ गया है , हेलमेट के शीशे से नफरत कर रही है हवाए  शायद , बड़ी जोर का थपेड़ा मार रही हैं
और बस ईअरफ़ोन पे अगला गाना जगजीत सिंह का आने ही वाला था की शुरू हो गयी ,
जोरो से बारिश शुरू हो गयी , प्रिंसिपल से मिलना ना होता तो जरुर भीगता , पास के ATM पे  रुक गया हूँ ,
एक लड़का बाइक पे लगभग भीगा है , एक लड़की भी है उसके साथ , भीगने के बावजूद बचने की कोसिस क्यों कर रहे हैं पता नही , शायद इसलिए क्युकी लड़की साथ में होने पर सोचने की क्षमता कुछ कम हो जाती है ,डिसिशन मेकिंग में पानी फिरने लगता है , लड़का समझता है लड़की उस पर उसी तरह ध्यान दे रही होगी जैसे कमेंटेटर क्रिकेट में हर बाल पे देते हैं जितना ध्यान तो खुद बॉलर या बैट्समैन ने नही  दिया होगा
                         सिक्यूरिटी गार्ड ने कमेंट दे ही मारा दोनों पे ,उनके  घर वालो को भी लपेट लिया अपने गुर्रिल्ला वारफेयर(एटीएम रूम के अन्दर से बैठ के कमेंट जो  मार  रहा था , मैं बी अन्दर ही था ) में ...

जबरदस्त बारिश है , हर एक पट्टी का इत्तेफाक दिख रहा है बारिश से मनो ख़ुशी के आंसू हो...
एक डाली लरज कर सड़क पे बहते पानी से तार्रुफ़ में लगी है ,कुछ पेड़ उभयचर बन गये हैं , उनका आधा शरीर पानी में हैं , सामने में कोई फूल  वाला पेड़ है , जबरदस्त नूर टपक रहा है उससे ,

प्राकृतिक सौन्दर्य का कुछ ही समय नजारा किया होगा की एक बुलेट गाड़ी की आवाज आई और सामने में एक शख्स जिनसे मैं कॉलेज के दिनों में मिला करता था दिख गये , मैंने आवाज दे के बुला लिया , बारिश तेज़ हो चुकी थी तो उनको बहाना भी नही मिला रोकने का .....
आते ही मियां शायराना अंदाज़ में बोले , "एटीएम बॉक्स में , आज रुपाओ की छाओं में मुए मौसम का लुत्फ़ लिया जा रहा है "
अरे आइये साब आप जैसा ही कोई चहिये था यहाँ , इंतज़ार करना किसे अच्छा लगता है , आज मियां मिश्रा जी की रिक्वेस्ट पे कुछ सुना दीजिये

बड़ा सुक्कून था , चाय होती तो मजा आ जाता ,
महफ़िल जैम गयी है , दोनो मैं और शकील मियां , वो लड़का जो लड़की के साथ था और सिक्यूरिटी गार्ड ,
कुछ आज की , कुछ कल की , कुछ कल के लिए आज की , कुछ आज के लिए कल की  बाते ,
कुछ कटाक्ष , कुछ सारांश , कुछ राजनीती , कुछ गलत कुछ सही , कुछ किताबी कुछ गुलाबी , कुछ फिरकी , कुछ फैजी , कुछ साहिरी , कुछ गुलजारी ,


बारिश रुकने में अभी वक़्त है .........देखते हैं .........

                                                                                   ............................. आगे


Wednesday 5 June 2013

किसी शब् नुक्कड़ से उठा कर उर्दू पहन ली थी इसने

बड़े अजीब किस्म के इंसान हो तुम , कभी तो आसान रहा  करो ...
ठंडी सड़क के किनारे    खड़ी  गाडियों के सीसो पे हाथ से लकीरे बनाती हुई वो  ऐसा ही कुछ बोली . मुझे ठीक से सुनायी  नही दिया क्युकी मैं इस बात में व्यस्त था की सेंट्रल डेल्ही की सडको पे बी इतना सन्नाटा हो सकता है रात १० बजे ........
इस बात से अंदाजा लगाया की ठण्ड वाकई जादा है 
दिन भर मोक टेस्ट्स देने के बाद बहुत जादा थकन थी सो दोनों एवे ही टहलने निकले थे 
मैंने कहा  "आसान   ही हूँ तभी नही समझ आता , और सच बोलू तो मुझे दुनिया नही समझ आती , पता नही किस लिफाफे में बंद हो कर के सारे काम करती है , हर आदमी अपनी अपनी कमजोरियों को एक कोने में दबा कर रखता है और दुनिया के सामने एक आइडियल  इमेज दिखअत है , बस वो कोना बड़ा होता जा रहा है कोई उसपे ध्यान नही देता , हो सकता है मैं भी न देता हूँ 
तुम्हारी नजर में जो आसान होना है शाययद मेरी नजर में वो पेचीदा होना ...

जूस शॉप के आगे बनी सीढियों पे बैठे हुए -
सबके तरीके अलग अलग है जीने के , तुम अपने तरीके से सबको देखोगे तो सब अलग ही दिखेंगे  न 
जो फिल्मे तुमको पसंद हैं वो केवल बमुश्किल २० % लोगो को पसंद हैं ,एक दो एक्सेप्शन  छोड़ दो 
......और जो तुमको नही पसंद वो अस्सी फीसद लोग पसंद करते हैं तो इसका क्या मतलब है की अब भी तुम सही हो 
बीच में ही टोकते हुए मैं  ..... फिल्मे बन ही कहाँ रही हैं आज कल ....देखो फिल्म में एक कहानी होती है , उस कहानी को रिप्रेजेंट करने के लिए कुछ एक्टर एक्ट्रेस चाहिये  होते हैं .......आज कल कुछ एक्टर एक्ट्रेस उठा के लाये जाते हैं और उनको रिप्रेजेंट करने के लिए एक कहानी चाहि ये होती है ..मतलब कांसेप्ट ही उल्टा हो गया है ........और जितने अस्सी फीसद उस जानिब भागते है वो इसलिए क्युकी उन्होंने बीस फीसद वाले लोगो की फिल्म देखि ही नही हैं 
जब तक आप बेस्ट नही जानते आप बुरे को भी अच्छा  ही कहेगे 
जावेद अख्तर साब एक दिन केजरीवाल से प्रश्न पूछ रहे थे  "आप का विज़न क्या है आदर्श इंडिया को लेकर "
बातो बातो में जावेद अख्तर साब बोले "आप दो दिन पाकिस्तान रह के आइये , भारत वापस आयेंगे तो भारत की धरती को चूमेंगे "
केजरीवाल साब ने बड़ा उम्दा जवाब दिया "आप एक घंटे के लिए सीरिया में हो आइये , आप पाकिस्तान की धरती को चूमेंगे "
आप को तुलना ही करनी है तो पहले आप जाने तो के ऊपर के लेवल्स पे है क्या , अँधेरे में तीर चलाने से क्या होगा .......
मैंने अपनी बात रखी   , वो चुप है , 

खैर छोडो !  चलो ठण्ड बढ़ रही है 
कल तीन चार दिन का अख़बार पलटना है ...


रोज उचक कर झाकना  चाहती है आवारगी 
कुछ  दिनों से शरीफ दिखाई देने लगी है 
किसी शब् नुक्कड़ से उठा कर उर्दू पहन ली थी इसने 


Wednesday 15 May 2013

एक सख्स जो लफ्जो में दिखता है ,सफहो में जीता है


अलग है जुदा है
लिहाफ जो चढा रखा है उतार  कर फेक देना चाहता है
जो दुनिया के सामने है] असल में है ही नही वो
ख्वाहिसो के बेजा तमाशो में उलझा हुआ , जबरदस्ती का कुछ कुछ  पिन्हाए हुए ......
माजी टटोलने पे कभी कभी मिलता है कोने में खड़ा वो भी , तन्हाई में
किसी दिन झंझोर कर देखना होगा शायद कही से टुकडो में गिरे वो सख्स जो
मेरे जेहन में रहता है , लफंगों से फिरता है भीतर से ही ..
टुकडो में मिल जाये तो अच्छा है
किसी दिन आ के मिला अचानक से गर पूरा का पूरा ,तो गुनाह हो जायेगा 
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